Friday, December 1, 2017

हमारे भारत का लोकतंत्र कितना मजबूत है ? vol -1


अभी अभी उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव के परिणाम आये।  यह जानकर हर्ष भी हुआ कि लोग लोकतंत्र में अपना वोट देना नैतिक कर्तव्य समझते हैं।  मगर अफ़सोस भी हुआ कि ये जिम्मेदारी सिर्फ कुछ ही लोग निभाते हैं।  
अब इस बात के दो पहलु हैं , पहला अच्छा प्रभाव दूसरा बुरा प्रभाव। 

अच्छा प्रभाव ये की कुछ जागरूक लोग समाज और देशहित  बड़ी संजीदगी से निभा रहे हैं।  और वे इस बात को जानते हैं की लोकतंत्र में 1 - 1 वोट की क्या कीमत होती है। 

अब आते है बुरे प्रभाव के बारे में जो लोग अपनी इस नैतिक जिम्मेदारी से मुँह चुराते हैं वो ही लोग असल में राजनीति में अपराध को बढ़ावा दे रहे हैं। 

जानते हैं कैसे --
 जब हम किसी पार्टी या निर्दलीय उम्मीदवार को किसी भी प्रकार के चुनाव में देखते हैं , तो सबसे पहले मन में प्रश्न आता है कि ये सब वादे करके चुनाव जीत जाते हैं और फिर अपनी शक्ल नहीं दिखाते।  हमें  इनसे क्या फायदा ?
यही सोच अगर 100 में से 60 लोग वोट देने न जाएँ तो सिर्फ उन उम्मीदवारों को अब सिर्फ 40 लोगों को टारगेट करना है।  और मज़े की बात यह की सिर्फ 40 लोगो के लिए ही 10 उम्मीदवार खड़े केर दिए जाएँ तो ratio 1 उम्मीदवार पर 4 लोगों का रह जायेगा। जाति समीकरण अलग से लाभ। 

अब आप खुद सोच लीजिये कि आपने किसे चुना ? असल में जो वो डालने जाते हैं वो किसी भी पार्टी या निर्दलीय उम्मीदवार को नहीं जिताते बल्कि जो लोग वोट नहीं देने जाते वही लोग उनको जितने का अवसर देते हैं जिनकी शिक्षा का स्तर भी निम्न होता है और समझ भी।  समाज  के लिए अगर कुछ करेंगे भी ( जिसके लिए वो चुने गए हैं ) तो उसका लम्बा चौड़ा शिलापट लगवा देंगे कि ये मैंने किया है। 

चुनाव की इस प्रणाली में बदलाव आना चाहिए कि मौका सिर्फ शिक्षित, सभ्य बेदाग़ छवि के लोगो को मिले।  
जब नौकरी के लिए फॉर्म भरते हैं तो elegibility criteria बना देते हैं जबकि देश का इतना महत्वपूर्ण पद निरक्षर आपराधिक छवि वाले लोग सिर्फ 40 लोगों के वोट से आसीन हो जाते है। 

हमारे भारत के लोकतंत्र में ये व्यवस्था ही नहीं कि जो लोग ईमानदारी से अपने  कर्तव्य का पालन करते हैं उन्हें प्रोत्साहित किया जाय ताकि उनसे दूसरे लोग प्रेणना ले सकें।

अगर राष्ट्रहित में कुछ अच्छा फैसला लेना ही है तो इस व्यवस्था में बदलाव लाना ही होगा और इसमें हम सब की भागीदारी होनी चाहिए।  वरना किसी चौराहे पर खड़े होकर लम्बे चौड़े देशहित में व्याख्यान डसने का  हमे कोई अधिकार नहीं। 

सच्चाई जानने के लिए आप स्वतंत्र हैं , अधिक जानकारी यहाँ से लें - Source :- Election Commission UP 














Friday, November 24, 2017

भारत की शिक्षा व्यवस्था कितने युवाओं को रोजगार दिला सकती है ? Vol-1


भारत की आजादी के 70 साल हो गए , मगर आज भी एक बहुत बड़ा यक्ष प्रश्न हमारे भविष्य के कर्णधारो के लिए है कि भारत की शिक्षा व्यवस्था कितने युवाओं को रोजगार दिलाती है और उसमे भारत का फाइनेंस सपोर्ट और  कास्ट - रिजर्वेशन  कैसे उनकी मदद करता है ?


उदाहरण के लिए हमे यदि किसी अच्छे संसथान में प्रवेश लेना हो तो बैंक से ऊँची ब्याज दरों पर शिक्षा ऋण लेना पड़ता है जबकि कोई कार लेनी हो तो उसका ब्याज दर शिक्षा ऋण के मुक़ाबले बहुत ही कम है ?
अर्थात यदि ब्याज दर से तुलना की जाय तो कार लेना आसान है शिक्षा ऋण की अपेक्षा और कार को किराये पर या किसी ऐसे व्यवसाय में लगा दिया जाय जहाँ से पैसे आते हो तो वो अगले दिन से ही लाभकारी बन जाता है  जबकि शिक्षा ऋण के मामले में ऐसा नहीं है पहले तो संसथान में प्रवेश के लिए मारा-मारी उसके बाद कास्ट - रिजर्वेशन की दीवार लाँघो और उसके बाद संस्थान की ऊँची फीस चुकाने के लिए ऊँची ब्याज दर पर लोन लो। पढ़ाई पूरी होने के बाद भी ये गारंटी नहीं की अच्छी नौकरी तुरंत मिल ही जाय।  और तो और प्रवेश के लिए कास्ट रिजर्वेशन का पहाड़ लांघना पड़ता है , जिसका आपके ज्ञान से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता।

उसके लिए तर्क क्या है कि  बच्चे अंदर क्वालिटी ही नहीं थी कि वो अच्छी नौकरी प्राप्त कर सके।  आप यहाँ एक प्रश्न है की इतने ऊँचे संस्थान जिसकी इतनी शोहरत और नाम है जिसमे प्रवेश के लिए मारा मारी है वो अपने बच्चों के अंदर वो क्वालिटी क्यों नहीं पैदा करते की उनके कैंपस से बाहर निकलते ही रोजगार मिल जाय ?

क्यूंकि हमारा एजुकेशन सिस्टम ऐसा बना हुआ है।  जो बच्चा हर वक़्त इस दबाव में रहेगा की उसे पढ़ाई के दौरान ही बैंक की ब्याज दर चुकाते  रहना है वो अपनी पर पढ़ाई पर ध्यान कैसे दे पायेगा ? दूसरा कारण ये भी हो सकता है कि अगर आप आप अमुक संस्थान में पढ़ाई करते है तो वो इस बात की गारंटी लेते है की पढ़ाई पूरी होते होते आपकी जॉब पक्की है तो वो बच्चे भी इस वजह से पड़ने के बजाय और सारे काम करते है जो उन्हें नहीं करने चाहिए।

अब जिम्मेदारी किसकी बनती है प्रवेश लेने वाले विद्यार्थी की, लोन देने वाले बैंक की, कास्ट - रिजर्वेशन का योगदान क्या है या बड़े बड़े दावे करने वाले उच्च शिक्षण संस्थानों का ?

हमारे पास यदि इसका उचित उत्तर है तो जरूर अपनी राय लिखें।







अगले अंक में क्रमशः ......








  

Thursday, November 23, 2017

पद्मावती का मुद्दा गर्माने के पीछे कोई साजिश तो नहीं ? Vol-1



आज से कुछ महीने पहले जब BJP अध्यक्ष अमित शाह के सुपुत्र श्री जय शाह का नाम नोटबंदी के दौरान अपनी कंपनी को करोडो रुपये का मुनाफा बिना किसी व्यवसाय के हुआ तो ये बात मीडिया में गयी।  अब इस बात से मीडिया और आम जनता को गुमराह करने के लिए ताजमहल को तेजोमहालय घोषित करने का ढोंग रचा गया  ये मुद्दा कुछ दिन तक मीडिया में छाया रहा मगर जैसे जय शाह का मुद्दा ठंडा हुआ वैसे ही ताजमहल का मुद्दा भी ठंडा हो गया।  

अब देखिये आजकल जो पद्मावती फिल्म का मुद्दा गरमाया है, वो भी कुछ और नहीं बस आम जनता का ध्यान भटकाने का बस एक जरिया है। 

आप सबको मालूम ही है कि मोदी जबसे भारत के प्रधानमंत्री बने हैं तब से MAKE IN INDIA का नारा लगा रहे हैं। उसी क्रम में भारत सरकार के एक उपक्रम HAL भी लड़ाकू विमानों के parts बनती है उसी ने तेजस जैसे हल्के और बेहतरीन मारक क्षमता वाले लड़ाकू विमान का निर्माण किया।  मगर मोदी जी अपने देश में बने तेजस से प्रेणना न लेकर फ्रांस की राफेल पर ज्यादा भरोसा जताया। साथ ही उसे लगभग 4 गुने दाम भी चुकाए जा रहे हैं। बेचारी आम जनता तो पद्मावती में फंसी है और उधर वो अपना SCAM इसके पीछे छुपा लेंगे।

अब आज का नया मुद्दा देखिये। कानपुर में जिन EVM मशीनो से निगम के चुनाव कराये जा रहे हैं उसकी भी पोल खुल गयी कि वोट किसी को भी डालो मगर बीजेपी के खाते में सारे वोट जा रहे हैं। अब इस घटना को छुपाने और मीडिया आम जनता का ध्यान भटकाने के लिए असम के स्वस्थ्य मंत्री का बयान कैंसर से पीड़ितों के लिए जो आया है उससे अब पूरा यकींन हो चला है कि बीजेपी में ये एक trend है की किसी घटना को अगर छिपाना है तो दूर कोई दूसरा मुद्दा छेड़ दो।  बाकि मीडिया उनका काम आसान कर देगी।   

इन सभी मुद्दों का यही हाल होना है। 

ये सब एक साजिश है आम और भोली-भाली जनता को बेवकूफ बनाने का, जो सिर्फ दाल रोटी में परेशान रहती है उन्हें तकलीफ देने का। जो ऐसी गन्दी राजनीती से अपनी रोटी सेकने के लिए गरीब और मासूम जनता के हक़ की लकड़ी छीनता है, उसका जवाब भी होता है । 




जवाब मिलेगा #2019Loksabha  

Wednesday, November 22, 2017

कांग्रेस को आखिर क्यों सताने लग गयी सदन की चिंता


वर्तमान में गुजरात चुनावों के कारण कांग्रेस सहित समूचा विपक्ष अचानक से सरकार से शीतकालीन सत्र जल्द बुलाने की मांग करने लग गया है। पता नहीं देश में आखिर ऐसा क्या हो गया है कि आज सभी विपक्षी दलों को संसद की बड़ी चिंता हो गयी है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कांग्रेस व पूरा विपक्ष अपने वह दिन भूल गया है जिसमें उसने संसद व विधानसभाओं के सत्रों को अपने हिसाब से चलाया था और मनमर्जी की थी। कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी का कहना है कि मोदी संसद खोलो , वहीं कांग्रेसियों का कहना है कि सरकार चुनाव लड़ने व लड़वाने की मशीन बन गयी है। वहीं कांग्रेस का एक बयान यह भी आया कि सरकार के सभी मंत्री चुनाव प्रचार में लग गये हैं आदि- आदि। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कांग्रेस पार्टी मोदी व भाजपा से कुछ अधिक ही परेशान हो रही है। आज की कांग्रेस न सिर्फ अपना इतिहास भूल चुकी है अपितु उसके सभी नेता बौद्धिक दिवालियेपन के दौर से भी गुजर रहे हैं यह उसके लिए बेहद खतरनाक दौर है। पीएम मोदी को घेरने व उनको बुरी तरह से बदनाम व अपमानित करने के लिए लालायित कांग्रेसी अपनी बुद्धिहीनता का नजारा ही देश की जनता के सामने पेश कर रहे हैं।
कांग्रेस व विपक्ष की चाल है कि वह नोटबंदी, जीएसटी व हाल ही में चीन के साथ डोकलाम विवाद सहित गौरक्षा के नाम पर लगातार हो रही हिंसा जैसे फ्लाॅप मुददों के आधार पर वह पीएम मोदी व केंद्र सरकार को एक बार फिर अपमानित व लांछित करेगी तथा उसका लाभ उसे गुजरात चुनावों में मिलेगा। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि संसद के शीतकालीन सत्र में नोटबंदी व चीन के साथ रिश्तों को लेकर संसद की समिति की जो रिर्पोटें आएगी उससे सरकार की किरकिरी होगी। जनता की ओर से लगातार नकारे जाने के बावजूद कांग्रेसी टिवटर बाज और बयान बहादुर नेता अपनी बौद्धिक हीनता का प्रदर्शन करेंगे। यह वहीं कांग्रेस व विपक्ष है जिसने कई अवसरों पर देश की संसद व विधानसभाओ को अपने हिसाब से चलाया और संविधान व अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर मनमानी की। अभी जब मोदी सरकार ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का ऐलान किया था तो उसके बाद कांग्रेस व संपूर्ण विपक्ष ने किस प्रकार से देश की संसद को बंधक बना लिया था उसे पूरे देश ने टी वी पर देखा था और उसके बाद पांच राज्यों उप्र ,उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में भाजपा की सरकार बन गयीं जबकि बिहार में तो महागठबंधन ही बिखर गया। वहीं कांग्रेस एक बार फिर भारी गलती की ओर जा रही है। तेलंगना राज्य गठन विधेयक कांग्रेसियों ने कैसे पास कराया था, यह भी कांग्रेसियों को याद करना चाहिये। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या विध्वंस के बाद कांग्रेस की सरकार ने किस प्रकार से संसदीय बहुमत का दुरूपयोग करते हुए भाजपा सरकारों को बर्खास्त किया था और विपक्ष के खिलाफ दमनचक्र चलाया था उसे पूरा देश जानता है। कांग्रेस ने अपने पूर्व पीएम की कुर्सी को बचाने के लिए देश में आपातकाल लगा दिया था और अभिव्यक्ति की आजादी पर सबसे बड़ा कुठाराघात तो कांग्रेस की सबसे बड़ी नेता इंदिरा गांधी ने किया था आज राहुल और सोनिया गांधी अपने ही परिवार की स्मृतियों से विमुख होते जा रहे हैं।
आज कांग्रेस को अपना पुराना इतिहास अच्छी तरह से फिर से पढना चाहिये। संसद में जब गंभीर विषयो पर चर्चा होती है तब यही कांग्रेसी मुंह चुराते नजर आते है।
संसदीय इतिहास व तारीखें गवाह हैं कि कांग्रेस व उसके समर्थन वाली केंद्र सरकारों के समय दस बार ऐसे अवसर आये जब शीतकालीन सत्र क्रिसस के बाद भी चला । सत्र को छोटा किया गया और विधानसभा चुनावों के चलते तारीखों को इधर - उधर खिसकाया गया। विगत संसद के सत्रें में कांग्रेस ने जीएसटी पर हुई तमाम बहसों का बहिष्कार किया था और हंगामा करके संसद को येनकेन प्रकारेण बाधित करने ही योजना बनाती रहती थी । आज कांग्रेस वाकई में अपना इतिहास पूरी तरह से भूल चुकी है क्योंकि इसी कांग्रेस की सरकार के समय 2008 और 2013 में शीतकालीन सत्र दिसम्बर में बुलाया गया था। 2008 में मनमोहन सिंह के कार्यकाल में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, राजस्थान व दिल्ली के विधानसभा चुनावों के दौरान शीतसत्र 17 अक्टूबर से 24 अक्टूबर तक व 10 दिसम्बर से 23 दिसम्बर तक चला था। 1990, 1994 और 2013 में संसद के शीतकालीन सत्रों को बहुत सीमित कर दिया गया था। 1976 में प्र्वू पीएम इंदिरा गांधी के समय तो शीतकालीन सत्र जनवरी में बुलाया गया था । विधाानवभा चुनावों को जीतने के लिये तो पूरी की पूरी कांग्रेस भी पहले जुटती रही है। रही बात संसद में कांग्रेसउपाध्यक्ष राहुल गांधी की उपस्थिति की तो वह केवल 54 फीसदी से अधिक नहीं रही है। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का यह कहना सही है कि अगर कांग्रेस प्रमाणिकता के साथ पूरे सदन में रहे, चर्चा में हिस्सा लें और यह तय करें कि उनको चुनाव प्रचार नहीं करना है तो सरकार इस विषय में गंभीरता से विचार कर सकती है। लेकिन कांग्रेस व विपक्ष को तो सरकार व पीएम मोदी को अपमानित करना है तथा उसको केवल गाली देना ही है।
यहां पर एक बात और ध्यान देने योग्य है कि श्रीमती सोनिया गांधी ने पीएम मोदी को एक पत्र लिखकर मांग की है कि महिला आरक्षण बिल को पास कराने के लिए पहल करिये उनकी बात का राहुल गांधी व वामपन्थियो ने भी समर्थन किया था। लेकिन यह भी कांग्रेस का गुजरात चुनावों में महिलाओं का समर्थन पाने के लिए नाटक है। पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने महिला आरक्षण को बिल को पेश किया था लेकिन महिला आरक्षण बिल को पास कराने का श्रेय बीजेपी को न मिल जाये इसलिए उसके खिलाफ कांग्रेस व उसके सहयेगी दलोें की ओर से ही साजिशें रची गयीं। आज महिला आरक्षण बिल के प्रति भी कांग्रेस व सोनिया का प्रेम नकली है। आज की कांग्रेस पूरी तरह से एक परिवार की बंधक हो चुकी है तथा यह परिवार अपना पुराना इतिहास व भूगोल भूल चुका है । यही कारण है कि आज की कांग्रेस पूरी तरह से जनता से कटती जा रही है। कांग्रेस जब तक परिवार वाद से नहीं मुक्त होगी तब तक उसका उत्थान नहीं होगा।


  मृत्युंजय दीक्षित
(आर्टिकल राइटर )
Viwe Source - https://goo.gl/1pDk26

Tuesday, November 21, 2017

क्या आप जानते हैं कि पद्मावती कौन है ? Vol-2

कल दिनांक २०-११-२०१७ के आगे क्रमशः ......... 
जो लोग सत्ता में यह कह कर काबिज हुए थे की हम तुष्टिकरण की राजनीती नहीं करते आज वे मात्र कुछ लोगो को खुश करने के लिए देश में civil - war जैसा माहौल तयार किये हैं।  इतिहास पता है या नहीं मगर वर्तमान को ख़राब करने का जो गन्दा खेल कुछ लोग सत्ता और राजनीति में खेल रहे हैं उसका करारा जवाब जनता देगी।  

हम बात कर रहे है हाल फ़िलहाल विवादो में घिरी फिल्म पद्मावती की।  अगर आप लोग थोड़ा भी कुछ चित्तौडग़ढ़ की रानी पद्मावती के बारे में जानते होंगे तो ये जरूर जानते होंगे की उन्होंने महिला सम्मान और सतीत्व की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति हँसते हँसते दे दिया।  

मगर आजकल के कथित देशभक्त और कुछ अपने को राजपूत कहने वाले लोग एक ऐतिहासिक महिला का सम्मान एक महिला का अपमान करके ये दिखाना चाहते है कि वो आम जनता से ज्यादा ज्ञान रखते हैं।  अभी कल ही की बात है मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री जी जो कुछ दिन पहले अपने यहाँ की सड़कों को USA की सड़को से ज्यादा बेहतर बता रहे थे , कल भावना में इतना बह गए की रानी पद्मावती को राष्ट्रमाता तक बोल दिया।  मतलब ये है कि ये नेता लोग रोटी पकानी है तो लकड़ी के लिए किसी भी हद तक गिर जायेंगे।  ये नहीं सोचेंगे की इससे क्या हम अपने राजधर्म का पालन कर रहे है ? 

इन सब से ऊपर मजे की बात और कि हमारे मन की बात कहने वाले माननीय प्रधानमंत्री जी का इस रविवार को इस सम्बन्ध में कोई शांति अपील तक जारी नहीं किया गया। इससे साफ़ पता चलता है कि अगर वो चाहें तो देश के प्रधान होने के नाते सबके मुँह पर ताला लगा सकते है।  मगर नहीं उन्हें येन केन प्रकरणेन गुजरात का किला फ़तेह करना है।  वर्ना इन छोटे मोटे नेताओं की औकात नहीं जो हिन्दुस्तान जैसे बोलने की आज़ादी वाले देश में तालिबानी भाषा का प्रयोग कर सके। नाक काट देंगे, सर काट देंगे, जिन्दा जला देंगे, १ करोड़, १० करोड़ , इत्यादि इत्यादि।  किसीको मारने के लिए खर्च कर देंगे मगर अपने देश में पल रही गरीबी को मारने के लिए फूटी कौड़ी नहीं निकालेंगे।  

आम जनता के लिए ये सब देशद्रोही हैं , गद्द्दार हैं। 

                                                                                            धन्यवाद।  

नोट- ये विचार एक लेखक  के हैं संपादक का इन सबसे कोई लेना देना नहीं है। 

Monday, November 20, 2017

क्या आप जानते हैं कि पद्मावती कौन है ? Vol-1

प्रसिद्ध राजकुमारी पद्मा जिनको हम आप पद्मावती (१३-१४ ईस्वी) के नाम से जानते है , अवधी भाषा के कवि मालिक मोहम्मद जायस (१५४० मध्यकालीन युग ) पद्मावत की काल्पनिक चरित्र भी है जो कि सिंघाल साम्राज्य (श्रीलंका) के राजा गन्धर्व सेन की अत्यंत सुंदर पुत्री थी। राजकुमारी को अपने एक बोलने वाले तोते से बहुत प्रेम था, जिसका नाम हिरामन था। राजकुमारी दिन रात उसी से बात करती थी। राजा को यह बात बहुत बुरी लगी, तो उन्होंने उस तोते को मार डालने का हुक्म दिया। यह बात जानकर राजकुमारी ने तोते की जान बचने के लिए उसे उड़ा दिया, उसको किसी बहेलिये ने पकड़कर एक ब्राह्मण को बेच दिया। वो ब्राह्मण उस तोते को राजा रतन सेन के राज्य चित्तौड़ राजस्थान ले आया चूँकि तोता बोलना जानता था इसलिए उसने ये तोता राजा को खुश करने के लिए भेंट कर दिया। राजा रतन सेन तोते की बोलने की कला से बहुत प्रसन्न हुए। तोते ने उनको राजकुमारी पद्मावती की सुंदरता का बहुत सुन्दर बखान किया तो राजा उनपर वो मोहित हो गए और उनसे विवाह करने का मन बना लिया।

तोते के दिशा निर्देशन में वो अपने 16000 वीर साथियो के साथ सात समंदर पार कर सिंघाल राज्य पहुँच गए। वहाँ उन्होंने भगवन शिव की आराधना कर पद्मावती को अपनी पत्नी के रूप में माँगा। इसी दौरान उस मंदिर में पद्मावती भी आयीं, उस तोते ने राजा को इशारा किया की यही राजकुमारी हैं, मगर रतन सेन से मिले बगैर पद्मा  वापिस महल आ गयीं।  उन्होंने राजा रतन सेन को देखा और उन्हें पाने की मन में लालसा जग गयी थी।

जब रतन सेन ने सोचा कि उन्होंने राजकुमारी से मिलने का अवसर खो दिया तो वो विरह-वियोग में जलने लगे (यही वो कारण था जब मालिक मुहम्मद जैसी ने पद्मावती की रचना की प्रेणना मिली) इस कारण उन्होंने आत्मदाह करने का संकल्प लिया परन्तु भगवान शिव और माता पार्वती ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। अब रतन सेन ने अपने साथियों के साथ महल पर आक्रमण कर दिया जिसमें उनकी हार हुई और वे अपने साथियों सहित बंदी बनाये गए। राजा गन्धर्व सेन ने उन्हें मृत्युदंड दिया तो रतन सेन के शाही दरबान ने उनकी पहचान जाहिर कर दी।  जब राजा गन्धर्व सेन को पता चला की आक्रमण का उद्देश्य सिर्फ राजकुमारी को पत्नी रूप में पाने के लिए किया गया है तो राजा ने प्रसन्नतापूर्वक राजकुमारी पद्मावती का विवाह राजा रतन सेन से कर दिया। साथ ही उनके  साथ ए 16000 साथियों के लिए भी 16000 पद्मिन (जिनकी दसों हाथ की उँगलियों में कमल फूल चिन्ह हो उन्हें पद्मिन कहा जाता है) विवाह योग्य लड़कियों से विवाह कराया गया।

इस बात को लेकर कि इस संसार में उनकी पत्नी जैसा कोई सुंदर नहीं रतन सेन को घमंड हो गया।  कुछ समय बाद राजा रतन सेन के पास सन्देश आया की उनकी पहली पत्नी नागमती उनके विरह में जल रहीं है।  राजा ने वापिस चित्तोड़ जाने का फैसला किया। समुन्द्र के रस्ते जब वे अपनी नयी रानी और अपने 16000 सपत्नीक साथियों के साथ वापिस आ रहे थे तो समुन्द्र के देवता ने उनका ये घमंड तोड़ने के लिए सजा दी और रानी को छोड़के बाकी सबको पानी में डुबा दिया। अब लक्ष्मी जी ने रतन सेन के प्रेम की परीक्षा लेने के लिए पद्मावती का रूप धारण किया। परन्तु राजा ने उनको पहचान लिया। समुन्द्र के देवता और माता लक्ष्मी ने उन दोनों उपहार सम्मान के साथ सुरक्षित तट तक पहुँचाया। राजा पुरी के रास्ते अपने राज्य चित्तौड़ वापिस आ गए।

कुछ समय बाद रानी नागमती और रानी पद्मावती के बिच अनबन पनप गयी। तत्पश्चात किन्ही कारणों से राजा रतन सेन ने अपने एक ब्राह्मण दरबारी राघव चेतन को धोखाधड़ी के आरोप में निर्वसित कर दिया।  अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए वो सीधा दिल्ली के सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी के दरबार पहुँच गया और राजा रतन सेन की पत्नी पद्मावती की सुंदरता के बखान करने लगा। अब अल्लाउद्दीन खिलजी के मन में रानी पद्मावती के लिए वासना जाग गयी और वो उन्हें हर कीमत पर पाने के लिए आमादा हो गया।  अल्लाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मावती के बदले अपने साम्राज्य में पद सम्मान उपहार आदि का लालच भी राजा रतन सेन को दिया मगर उन्होंने अपने राजपूताना कर्तव्य का निर्वहन करते हुए उसे इंकार कर दिया। इस बात को लेकर अल्लाउद्दीन खिलजी ने चित्तोड़ पर आक्रमण करने का फैसला लिया और राजा को संधि करने छल रचा। छल से राजा रतन सेन को बंदी बनाकर दिल्ली लाया गया। इस युद्ध में चित्तौड़ के पडोसी राज्य कुम्भलनेर के राजा देवपाल ने भी रानी पद्मावती को अपना प्रणय निवेदन एक दूत के जरिये भेजा। जब रतन सेन दिल्ली से वापिस चित्तौड़ वापिस तो देवपाल को अपनी बेइज्जती का बदला लेने का ठाना।  इस युद्ध में देवपाल और रतन सेन मरे गए।  इस अवसर को देखकर अल्लाउद्दीन खिलजी मन में एक बार फिर रानी पद्मावती को पाने की लालसा जाग गयी और चित्तौड़ पैर पुनः आक्रमण कर दिया। रानी पद्मावती और रानी नागमती ने अपने पति की चिटा पर अपने राज्य और सतीत्व की रक्षा के लिए अपनी 16000 सहेलियों के साथ जौहर कर लिया।
 View Source :_ wikipedia

अगले ब्लॉग में जानिए अब आज कल फिल्म पद्मावती के ऊपर हुए विवाद की असलियत ...... 

हमारे भारत का लोकतंत्र कितना मजबूत है ? vol -1

अभी अभी उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव के परिणाम आये।  यह जानकर हर्ष भी हुआ कि लोग लोकतंत्र में अपना वोट देना नैतिक कर्तव्य समझते हैं।...